आयतुल्लाह सीस्तानी का पैग़ाम इमाम हुसैन अ.स. के ज़ाएरीन के नाम
आयतुल्लाह सीस्तानी का पैग़ाम इमाम हुसैन अ.स. के ज़ाएरीन के नाम
आयतुल्लाह सीस्तानी ने इस साल इमाम हुसैन अ.स. के चेहलुम पर जाने वाले ज़ाएरीन के लिए कुछ नसीहतें की हैं जिनको हम इस लेख में आपके लिए पेश कर रहे हैं। इमाम सादिक़ अ.स. द्वारा इमाम हुसैन अ.स. के ज़ाएरीन के लिए की जाने वाली दुआ में आया है कि, ख़ुदाया हमारे शिया जब ज़ियारत के लिए जाते हैं तो हमारे दुश्मन उनकी आलोचना करते हैं, लेकिन उनकी यह दुश्मनी हमारे शियों को हमारी ज़ियारत को आने को ले कर बिल्कुल भी प्रभावित न कर सकी, इसलिए ख़ुदाया हमारे चाहने वालों पर रहम फ़रमा। अभी शियों ने मोहर्रम में इमाम हुसैन अ.स. की अज़ादारी की, दसियों मिलियन लोगों ने अपने अपने देशों में इमाम हुसैन अ.स के मिंबरों से दीनी बातों और नसीहतों को सुना, अहले बैत अ.स. के लिए अपने दिलों में पाई जाने वाली मुहब्बत को अज़ादारी कर के और बढ़ाया, लेकिन इमाम हुसैन अ.स. के वसीले से नाज़िल होने वाली बरकतें यहीं नहीं ख़त्म होती हैं। यही वह लोग जो इमाम हुसैन अ.स. की अज़ादारी में शामिल हुए, आज कल के दिनों में वह अपने को हज़ारों किलो मीटर का सफ़र तय कर के कर्बला इमाम अ.स. के चेहलुम पर पहुंचाने की ज़ोर शोर से तैय्यारियां कर रहे हैं, ऐसा महसूस होता है कि जैसे दुनिया एक बार फिर एक नए इतिहास की गवाह बनेगी, और एक बार फिर इमाम हुसैन अ.स. के शहर में ज़ाएरीन का सैलाब दिखाई देगा। ख़ुदाया इस बे मिसाल मिशन में बरकत दे, और इस मिशन के शुरू करने वाले पर ख़ुदा का दुरूद और सलाम हो।
इस महान अवसर कुछ बातों की ओर ध्यानदेना ज़रूरी है, जबकि बहुत से ज़ाएरीन के लिए यह कोई नई बात नहीं है, लेकिन नेकी की ओर ध्यान दिलाना मोमिन की विशेषताओं में से है।
1. ज़ियारत केवल अल्लाह के लिए हो,ज़ियारत एक इबादत है जिसका संबंध नीयत से है, और ज़ियारत के क़ुबूल होने का संबंध भी नीयत से है, यही वजह है कि हर ज़ाएर का सवाब अलग अलग होगा, हम अल्लाह से दुआ करते हैं कि इस ज़ियारत का अधिक से अधिक सवाब आप को मिले, इस राह में ख़ुलूस जितना अधिक होगा आपकी ज़ियारत का उतना अधिक सवाब आपको मिलेगा, इस राह में हमारा कोई एक भी क़दम यह सोंच कर न उठे कि कोई मुझे देखे और बाद में लोगों के बीच मेरी ज़ियारत का चर्चा करे, या किसी इदारे या विशेष संगठन को ख़ुश करने के लिये हमारी ज़ियारत नहीं होना चाहिए, बल्कि इस पूरे सफ़र में हमारा पूरा ध्यान इमाम हुसैन अ.स. की क़ुर्बानी की ओर होना चाहिए, और हमारे कानों में इमाम हुसैन अ.स. का आशूर को भरी दोपहर में किए जाने वाले इस्तेग़ा से (है कोई जो मेरी मदद करे) की गूंज होना चाहिए, ताकि हमारी ज़ियारत और हमारा पैदल चलना उस इस्तेग़ासे पर लब्बैक कहने के लिए हो सके। यह बात बिल्कुल सच है कि इमाम हुसैन अ.स. की अल्लाह के नज़दीक जो अहमियत और दर्जा है उसके कारण कोई भी दुआ ख़ाली नहीं जाती लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि इंसान वहां जा कर अपनी दुनिया को संवारने के लिए दुआ करता रहे, ज़ियारत का मक़सद दुनिया और उसकी चकाचौंध को पाने के लिए बिल्कुल नहीं होना चाहिए, कि अगर उसको पता चल जाए कि हमारी यह दुआ पूरी नहीं होगी तो वह ज़ियारत ही को छोड़ दे।
2. नमाज़ और पर्दे की पाबंदी और प्रशासन का सहयोग करें, वह मोमेनीन जो लंबे सफ़र की तकलीफ़ें बर्दाश्त कर के आते हैं उनके लिए ज़रूरी है कि वह इस्लामी वैल्यूज़ और कर्बलाकी रूह यानी नमाज़ को अपने समय पर पढ़ें, और हमारी वह बहनें जो इस पैदल चलने वाले क़ाफ़िले में शामिल होंगी उनके लिए भी ज़रूरी है कि अपने पर्दे, अपने सम्मान और गरिमा का ख़्याल रख़े, और कर्बला की फ़ातेह हज़रत ज़ैनब की पैरवी करें, कि उन्होंने उन कठिन परिस्तिथियों में भी पर्दे का किस हद तक ख़्याल रखा था। सभी ज़ाएरीन के लिए ज़रूरी है कि अच्छे अख़लाक़ से पेश आएं, और प्रशासन के लोग हों या रास्ते में रुकने की व्यवस्था करने वाले ज़िम्मेदार लोग हों या रास्ते में हमारे लिए फ्री खाने पीने और दूसरी तमाम व्यवस्था कर के अपने करम और सख़ावत की मिसाल पेश करने वाले लोग हों सबके साथ अच्छे अख़लाक़ से पेश आएं, और रास्ते मेंखाने पीने के लिए मिलने वाली हर चीज़ को बर्बादी से बचाएं।
3. उलेमा से फ़ायदा उठाएं,पिछले कई बरसों से मराजे की ओर से इस पैदल चलने वाले करोड़ों लोगों के बीच में उलेमा को दीनी अहकाम और मसाएल बताने के लिए भेजा जाता है, ज़ाएरीन से हमारी गुज़ारिश है कि इन उलेमा से जितना हो सकें फ़ायदा हासिल करें, उनसे मसाएल और अहकाम पूछें, और इंशा अल्लाह हर साल से अधिक इस साल उलमा को भेजा जाएगा, ताकि वह अपनी इल्मी फ़िक्र को लोगों तक पहुंचा कर दीन की तबलीग़ कर सकें
4. अज़ादारी में बिदअत दाख़िल करने से परहेज़ करें, आयतुल्लाह सीस्तानी ने अपनी नसीहतों में आज के दौर के एक अहम विषय की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि हमारी ज़िम्मेदारी है कि उलेमा की ओर से अज़ादारी के बताए गए तरीक़ों के हिसाब से ही अज़ादारी करें, हमारी अज़ादारी में वही चीज़ें होना चाहिए जो हमारे दीनदार बुज़ुर्गों द्वारा हम तक पहुंची हैं, हमें अज़ादारी के नाम पर कोई भी ऐसा क़दम नहीं उठाना चाहिए जो अज़ादारी की अहमियत को लोगों की निगाह में कम कर दे, केवल वही तरीक़ा होना चाहिए जो इमाम हुसैन अ.स. की अज़ादारी की शान के हिसाब से हो, क्योंकि इमाम हुसैन अ.स. के महान इंक़ेलाब को उसी तरह से पाक बाक़ी रखना हम सबकी ज़िम्मेदारी है।
5. एकता बाक़ी रखना समय की ज़रूरत, इमाम जुमा और मराजे के वकील कई सालों से एकता, इत्तेहाद और अंदरूनी मतभेद से बचने पर ज़ोर देते आए हैं, क्योंकि आज इस्लामी उम्मत जिन कठिन परिस्तिथियों से गुज़र रही है वह सबके सामनेहै, मुसलमानों के विरुध्द साज़िशें की जा रही हैं, इसलिए शियों के लिए विशेष कर इमाम हुसैन अ.स. की अज़ादारी के दिनों में ऐसा बर्ताव ज़रूरी है जिससे किसी तरह का कोई मतभेद न हो, सभी मुसलमान विशेष कर अहले बैत अ.स. की पैरवी करने वालों की ज़िम्मेदारी है कि इमाम हुसैन अ.स. के इंक़ेलाब लाने के कारणों को लोगों के सामने बयान करें, और उनको नई नस्ल और जवानों तक पहुंचाएं, क्योंकि इमाम हुसैन अ.स. और आप के वफ़ादार साथियों ने इसी दीन को आज की नस्ल और क़यामत तक आने वाली नस्लों तक पहुंचाने के लिए ही क़ुर्बानी दी, और इसी तरह हमारे जांबाज़ बच्चे आज भी उसी राह पर चलते हुए शहादत और करामत के मैदान मेंअपना माल और अपनी जान क़ुर्बान कर रहे हैं।
6. शहीदों की क़ुर्बानी ध्यान में रखें, इमाम हुसैन अ.स. और उनके साथियों की ज़ियारत के दिनों में हम अहले बैत अ.स. के हरम की रक्षा करते हुए अपनी जान क़ुर्बान कर देने वाले जांबाज़ जवानों और उलेमा को ज़रूर याद रखें, जो इमाम हुसैन अ.स. की राह पर चलते हुए दीन और अहले बैत अ.स. के दुश्मनों से मुक़ाबले पर डटे रहे और आख़िर में अपनी जान उसी राह में क़ुर्बान कर दी, यह लोग इमाम हुसैन अ.स. के सच्चे मददगार हैं जिन में से कुछ ने अल्लाह से किए गए वादे को पूरा करते हुए शहादत को गले लगाया और कुछ अभी भी उसी रास्ते पर चल रहे हैं।इसीलिए ज़रूरी है कि हम उन लोगों को याद रखेंउनके लिए दुआ करें कि ख़ुदा उनको कामयाब करे,और शहीदों के लिए अल्लाह से दुआ करें, ज़ख़्मियों और उनके घर वालों से अगर मुमकिन हो तो मुलाक़ात करें, जितना हो सके उनकी मदद करें, क्योंकि हम उनके क़र्ज़दार हैं और मैं नहीं समझता हम उनके इस क़र्ज़ को अदा कर सकें, इसीलिए अल्लाह से दुआ है कि ख़ुदाया तूउन लोगों को बेहतर सिला दे।
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