ग़दीर, अहले सुन्नत की किताबों की रौशनी में

 18 ज़िलहिज्जा सन 10 हिजरी ग़दीर के मैदान में पेश आने वाली घटना इसलिए भी अहमियत रखती है क्योंकि ग़दीर के बाद की बहुत सारी घटनाएं ऐसी हैं जिनका सीधा संबंध ग़दीर से है, इसीलिए बिना ग़दीर को समझे बाद की किसी घटना को सहीह तरह से समझना आसान नहीं होगा। अहले सुन्नत के बड़े उलमा ने अपनी किताबों में ग़दीर को अनेक तरह से नक़्ल किया है, हम यहां उनमें से कुछ अहम किताबों को उनके द्वारा नक़्ल की गई हदीस के साथ बयान करेंगे।

*सुनन-ए-तिरमिज़ी*

ज़ैद इब्ने अरक़म ने पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद स.अ. से हदीस को इस तरह नक़्ल किया कि आपने फ़रमाया: जिसका मैं मौला हूं उसके यह अली अ.स. मौला हैं। (सुनन-ए-तिरमिज़ी, मोहम्मद इब्ने ईसा, जिल्द 12, पेज 175)

*मुसन्नफ़े इब्ने अबी शैबा*

इब्ने अबी शैबा कहते हैं कि हम से मुत्तलिब इब्ने ज़ियाद ने उस ने अब्दुल्लाह इब्ने मोहम्मद इब्ने अक़ील से उसने जाबिर इब्ने अब्दुल्लाह अंसारी से नक़्ल किया है कि जाबिर कहते हैं: हम सब जोहफ़ा में ग़दीरे ख़ुम में जमा थे उसी समय पैग़म्बरे अकरम स.अ. ने इमाम अली अ.स. का हाथ अपने हाथ में ले कर इरशाद फ़रमाया: जिसका मैं मौला हूं उसके यह अली अ.स. मौला हैं। (अल-मुसन्नफ़, इब्ने अबी शैबा, जिल्द 7, पेज 495)

*अल मोजमुल कबीर तबरानी*

अपनी किताब मोजमुल-कबीर में अबू इसहाक़ हमदानी से नक़्ल करते हुए कहते हैं कि उसका बयान है कि मैंने हब्शा इब्ने जुनादह को यह कहते हुए सुना कि मैंने पैग़म्बरे अकरम स.अ को ग़दीरे ख़ुम में कहते हुए सुना कि: ख़ुदाया जिसका मैं मौला हूं उसके यह अली अ.स. मौला हैं, ख़ुदाया तू उस से मोहब्बत करना जो अली अ.स. से मोहब्बत करे, और उस से नफ़रत कर जो अली अ.स. से नफ़रत करे, और उसकी मदद कर जो अली अ.स. की मदद करे, और उसका साथ दे जो अली अ.स. का साथ दे। (मोजमुल-कबीर, तबरानी, जिल्द 4, पेज 4)

*अबू सऊद और इब्ने आदिल की तफ़सीर*

इन दोनों तफ़सीर में सूरए मआरिज की पहली आयत की तफ़सीर में लिखा है कि, अज़ाब का सवाल करने वाले का नाम हारिस इब्ने नोमान फ़हरी था, और इस आयत के नाज़िल होने की वजह यह है कि जब हारिस ने पैग़म्बरे अकरम स.अ. के क़ौल कि: "जिसका मैं मौला हूं उसके यह अली अ.स. मौला हैं" इसको सुना वह अपनी ऊंटनी पर सवार हो कर पैग़म्बरे अकरम स.अ. के पास आया और कहने लगा कि, ऐ मोहम्मद (स.अ.) तुम ने हम लोगों से एक ख़ुदा की इबादत के लिए कहा और यह कहा कि मैं अल्लाह का भेजा रसूल हूं, हम लोगों ने मान लिया, दिन में 5 वक़्त की नमाज़ पढ़ने के लिए कहा मान लिया, हमारे माल से ज़कात मांगी हम लोगों ने दे दी, हर साल एक महीने रोज़े रखने के लिए कहा रख लिया, हज करने के लिए कहा मान लिया, लेकिन आप अपने चचेरे भाई को हम से ज़ियादा अहमियत देना चाह रहे हैं यह हम लोग बर्दाश्त नहीं करेंगे, फिर वह पैग़म्बरे अकरम स.अ. से पूछता है कि यह जो कहा अपनी तरफ़ से कहा है या अल्लाह के हुक्म से? पैग़म्बर स.अ. ने फ़रमाया: उस ख़ुदा की क़सम! जिसके अलावा कोई दूसरा ख़ुदा नहीं है कि मैंने जो कुछ भी कहा है उसी ख़ुदा के हुक्म से कहा है, इसके बाद हारिस ने कहा ख़ुदाया अगर मोहम्मद (स.अ.) सच कह रहे हैं तो आसमान से मेरे ऊपर अज़ाब नाज़िल कर, ख़ुदा की क़सम! वह यह कह कर अभी अपनी ऊंटनी तक भी नहीं पहुंचा था कि आसमान से एक ऐसा पत्थर नाज़िल हुआ जिसने उसके सर को चीर कर उसे हलाक कर दिया। (तफ़सीरुल-लोबाब, इब्ने आदिल, जिल्द 15, पेज 456)

*अल-दुर्रुल मनसूर*

इस किताब में जलालुद्दीन सियूती ने अबू हुरैरा से इस तरह हदीस नक़्ल की है कि: जिस समय ग़दीरे ख़ुम की घटना पेश आई उस दिन 18 ज़िल-हिज्जा थी, पैग़म्बरे अकरम स.अ. ने फ़रमाया: जिसका मैं मौला हूं उसके यह अली अ.स. मौला हैं, इसी के बाद अल्लाह ने आयए इकमाल को नाज़िल किया। (अल-दुर्रुल मनसूर, जलालुद्दीन सियूती, जिल्द 3, पेज 323)

आश्चर्य की बात यह है कि इस किताब को लिखने वाले ने इस हदीस को नक़्ल करने के बाद इसको क़ुबूल करने से इंकार कर दिया है, जबकि दूसरी जगह पर इन्होंने इस हदीस को क़ुबूल किया है।

*तफ़सीरे इब्ने कसीर*

*" یا ایھا الرسول بلغ ما انزل الیک من ربک"*

के नाज़िल होने के पीछे कारण को बताते हुए इब्ने कसीर कहते है कि अबू हारून की तरह से इब्ने मरदूया ने हदीस को अबू सईद ख़ुदरी से नक़्ल करते हुए कहा है कि: यह आयत ग़दीरे ख़ुम में पैग़म्बरे अकरम स.अ. पर नाज़िल हुई, जिसके बाद आप ने फ़रमाया: जिसका मैं मौला हूं उसके यह अली अ.स. मौला हैं, इसके बाद इब्ने कसीर ने अबू हुरैरा से भी हदीस नक़्ल करते हुए यह भी लिखा है कि यह घटना 18 ज़िल-हिज्जा को हज के बाद पेश आई। (तफ़सीरुल क़ुर्आनिल अज़ीम, इब्ने कसीर, जिल्ज 3, पेज 28)

*तफ़सीरे आलूसी*

आलूसी भी आयते बल्लिग़ के नाज़िल होने की वजह के बारे में इब्ने अब्बास से नक़्ल करते हुए लिखते हैं कि: यह आयत इमाम अली अ.स. के बारे में नाज़िल हुई, जब अल्लाह ने पैग़म्बरे अकरम स.अ. को हुक्म दिया कि वह इमाम अली अ.स. की विलायत का ऐलान करें, लेकिन पैग़म्बर स.अ. लोगों के आरोप के कारण उस समय तक एलान नहीं कर सके थे, फिर यह आयत नाज़िल हुई, और पैग़म्बर स.अ. ने ग़दीरे ख़ुम में इमाम अली अ.स. का हाथ पकड़ कर फ़रमाया: जिसका मैं मौला हूं उसके यह अली अ.स. मौला हैं, ख़ुदाया तू उसे दोस्त रख जो अली अ.स. को दोस्त रखे और उसे दुश्मन रख जो अली अ.स. से दुश्मनी रखे। (रूहुल मआनी, आलूसी, जिल्द 5, पेज 67-68)

*फ़तहुल-क़दीर*

इस किताब में इस तरह से नक़्ल हुआ है कि, पैग़म्बरे अकरम स.अ. ने बुरैदा से कहा क्या मैं मोमिनीन पर ख़ुद उनसे ज़ियादा हक़ नहीं रखता? बुरैदा कहते हैं मैंने कहा: बिल्कुल आप को हक़ है, फिर पैग़म्बरे अकरम स.अ. ने फ़रमाया: जिसका मैं मौला हूं उसके अली अ.स. मौला हैं। (फ़तहुल-क़दीर, जिल्द 6, पेज 20)

*तफ़सीरे राज़ी*

फ़ख़रुद्दीन राज़ी कहते हैं कि यह आयत इमाम अली अ.स. की शान में नाज़िल हुई है, और इसके नाज़िल होने के बाद रसूले ख़ुदा स.अ. ने इमाम अली अ.स. का हाथ पकड़ के फ़रमाया: जिसका मैं मौला हूं उसके यह अली अ.स. मौला हैं, ख़ुदाया तू उसे दोस्त रख जिसने अली अ.स. से दोस्ती रखी और उस से दुश्मनी रख जिसने अली अ.स. से दुश्मनी रखी, इसके बाद हज़रत उमर ने इमाम अली अ.स. से मुलाक़ात की और मुबारकबाद दे कर कहा कि आप मेरे और सभी मोमिन मर्द और औरतों के मौला हैं। (मफ़ातीहुल-ग़ैब, फ़ख़रुद्दीन राज़ी, जिल्ज 6, पेज 113)

*इसके अलावा ग़दीर की हदीस को अहले सुन्नत की इन किताबों में भी देखा जा सकता है।*

अल-इस्तीआब फ़ी मारेफ़तिल असहाब, जिल्द 1, पेज 338

उस्दुल-ग़ाबा, जिल्द 1, पेज 2-3

मुरव्वजुज़-ज़हब, जिल्द 1, पेज 346

मुख़्तसर तारीख़े दमिश्क़ नाम की किताब में 12 अलग अलग रावियों से इस हदीस को नक़्ल किया गया है, जिल्द 2-3-4-5

मिरातुल-जिनान, जिल्द 1, पेज 51

अल-मुख़तसर फ़ी अख़बारिल बशर, जिल्द 1, पेज 126

तारीख़ुल ख़ुलफ़ा, जिल्द 1, पेज 69

तारीख़े बग़दाद, जिल्द 3, पेज 333


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